Sunday 24 February 2013

दिल्लगी


दिल्लगी 

जिंदगी को कुछ ज्यादा ही
करीब से देखा हैं 
इन्सान को इस दुनिया में
कभी कभी पाया हैं ||

गर्म हवा, सुलगती रातें 
खयालो में हजारो बातें 
एक बडे से पेड के नीचे
कभी धूप को भी पाया हैं ||

लंबी कतारे, मायूस चेहरें 
हर खुशी पे गम के पहरे
एक दिये की रोशनी में
कभी अंधेरा भी पाया हैं ||

शमशान में जलती चिताएं
बाजार में बिकती वफाएं
एक मंदिर के दरवाजे पे
कभी शैतान को भी पाया हैं ||

--जयंत विद्वांस


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