दिल्लगी
जिंदगी को कुछ ज्यादा ही
करीब से देखा हैं
इन्सान को इस दुनिया में
कभी कभी पाया हैं ||
गर्म हवा, सुलगती रातें
खयालो में हजारो बातें
एक बडे से पेड के नीचे
कभी धूप को भी पाया हैं ||
लंबी कतारे, मायूस चेहरें
हर खुशी पे गम के पहरे
एक दिये की रोशनी में
कभी अंधेरा भी पाया हैं ||
शमशान में जलती चिताएं
बाजार में बिकती वफाएं
एक मंदिर के दरवाजे पे
कभी शैतान को भी पाया हैं ||
--जयंत विद्वांस
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