Sunday 24 February 2013

कत्लं


कत्लं

दर्दे दिलसे जब आह निकली तो लगा,
न जाने अब जिंदगी कैसे कटेगी

अब लग रहा है, ये भी कोई गम है
बेहोशी के लिए बहुत कम है

बात कुछ ऐसी हुई, जान जानेके लिए
जहर खाया और उसकी आदत हो गई

बाते हुई थी, चर्चे हुए थे
मकामपे पहुंचने के वादे हुए थे

अब ना वो बात है, ना वो वादे है
बस, बेवफाई के उनकी चर्चे है

क्या नजाकत थी, क्या अंदाज था
आखोके ऐनेमें सिर्फ मेरा अक्स था

हद-ए-जमाल थे वो, और शायद
इसलिए हम काबिल-ए-कत्लं थे

--जयंत विद्वांस

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